पर्यटन की दृष्टि से मॉरीशस का स्थान पूरे विश्व में विशिष्ट है। हिंद महासागर में अफ्रिका के दक्षिणी छोर से थोड़ा बायें हट के मेडागास्कर के पास स्थित इस
देश को प्रकृति ने खुले हाथों से सौंदर्य राशि प्रदान की है। लाखों-लाख पर्यटक यहाँ प्रति वर्ष आते हैं और इसके सौंदर्य से अभिभूत होते हैं। मॉरीशस की मेरी
यात्रा मात्र पर्यटन के लिए नहीं हुई थी भारतीय अप्रवासियों के मॉरीशस आगमन की 180वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में वहाँ के भोजपुरी स्पीकिंग यूनियन एवं कला एवं
संस्कृति मंत्रालय के तत्वाधान में आयोजित अंतराष्ट्रीय हिंदी एवं भोजपुरी सम्मेलन में भाग लेने वाले भारतीय प्रतिनिधि मंडल की एक सदस्य के रूप में मॉरीशस
जाने का सुयोग मुझे मिला। इस सुयोग के कारण मेरी यात्रा गंभीर प्रयोजन से जुड़ गई।
मेरी यात्रा के सहयात्री थे राय दंपति श्री एक.के. राय एवं श्रीमती विभा राय। राय दंपति के बड़े पुत्र श्री मनीष राय भारतीय नौ सेना में अधिकारी हैं। आजकल वे
मुंबई में हैं अत: हम लोगों की यात्रा का पहला पड़ाव मुंबई के नेवी नगर स्थित उनका आवास बना। मॉरीशस में समुद्र का जो सहचर्य मिलने वाला या उसकी शुरुआत यही से
हो गई। प्रकृति ने अथाह जलराशि से भारत के मुंबई और मॉरीशस के पोर्ट लुइए को जोड़ रखा है, मनुष्य ने इस जलराशि को बाँट कर दो नाम दे रखा है-अरब सागर और हिंद
महासागर। हम अरब सागर के तट पर थे, हमें हिंद महासागर में उगे उतराते द्वीप मॉरीशस पहुँचना था।
दिनांक 28.10.2014 की रात थी। बड़े आत्मीय और सुसंस्कृत ढंग से मनीष और उनकी पत्नी
ने अपनी कार से रात को लगभग 1 बजे मुंबई के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पहुँचाया। तारीख बदल गई थी। 20 अक्टूबर, 2014 को ब्रह्म मुहुर्त में प्रात: 4:30 बजे हवाई
जहाज से हम लोग वाया दुबई मॉरीशस के लिए निकले। दुबई में हमें काफी देर तक रूकना था। दुबई के भव्य और विशाल हवाई अड्डा पर खरीदारी करते, मटरगश्ती करते कब 4-5
घंटे बीत गए, पता ही नहीं चला। दुबई से सीधे दक्षिण हिंद महासागर के ऊपर से हम उड़ते जा रहे थे। हम हनुमान नहीं थे। वहाँ वह आत्मबल! कहाँ वह महत् प्रयोजन! हम
तो विज्ञान की उपलब्धि में कैद अपने पर इतराने वाले क्षुद्र मानव थे। दंभ या हमारे भीतर कि हम खूबसूरत मॉरीशस को देखने जा रहे हैं। हम लोग जब मॉरीशस पहुँचे,
वहाँ शाम उतर रही थी। हवाई अड्डे पर उतरते ही वहाँ की कार्यशैली ने ध्यान खींचा। बहुत भीड़-भाड़ नहीं थी शायद इसलिए आपाधापी नहीं थी। सारी औपचारिकताएँ सहज ढंग
से पूरी हो गई। हवाई अड्डे से बाहर निकलते ही आयोजन के प्रतिनिधि मिल गए, संयोग से उनके साथ हमसे पहले पहुँचे एक दो हमारे परिचित भारतीय भाई भी थे अत: किसी तरह
की कोई परेशानी हुई ही नहीं। ये सभी लोग हिंदी और भोजपुरी अच्छी तरह जानते थे। कुछ अनजाना अनचीन्हा लगा ही नहीं, अपनेपन की डोर ने यहीं बाँध लिया।
एयरपोर्ट से निकलकर हम मॉरीशस के सबसे बड़े शहर क्वात्रे बोर्नस की तरफ जा रहे थे, जहाँ हमारे ठहरने की व्यवस्था की गई थी। क्वात्रेबोर्नस सन् 1901 में एक
गाँव था आज 27.2 किमी में फैला मॉरीशस का व्यस्ततम शहर है। क्वात्रेबोर्नस जाते हुए सड़क के किनारे गन्ने के खेत भारत की याद दिला रहे थे।
दिनांक 29.10.2014 का सूरज हमारे भीतर नए अनुभवों एवं संवेगों को जन्म दे रहा था। रात ने थकान मिटा दी थी। सुबह जब मैंने गोल्ड क्रेस्ट होस्ट के कमरे की
खिड़कियों के पर्दे सरकाए तो बसंत हमारे स्वागत में खड़ा था। फूलों की खुशबू हवा में भरी थी। आम कहीं मंजरी से भरे थे, कही टिकोरों से कही पके आमों से। आम की
अलग-अलग वेरायटी, अलग-अलग स्वाद। लीची के पेड़ों की भी यही हालत। हम शरद छोड़कर बसंत में आ गए थे। भारत में द्वंद आ रही थी, मॉरीशस में गर्मी। मॉरीशस जलवायु की
दृष्टि से भारत से विल्कुल उल्टा है। हम दक्षिण गोलाद्ध में थे।
रात को ही 9:00 बजे मनीष के मित्र ऋषि कोहली मिलने आए थे। वे भी भारतीय नौसेना के अधिकारी हैं। आजकल उनकी तैनाती मॉरीशस में है। ऋषि ने अगली सुबह हमें पोर्ट
लुइस अपने निजी इंतजाम से भेजने की बात कही पोर्ट लुइस मॉरीशस की राजधानी तो है ही, विश्व इतिहास में इसका महत्व है। यहाँ के फॉडन वाटर फ्रंट एरिया में बने
म्यूजियम को देखना मेरी पहली प्राथमिकता थी। मैं उस ओर बढ़ ही रही थी कि मॉरीशस के राष्ट्रीयता सर शिव सागर रामगुलाम की मूर्ति पर नजर पड़ी। सम्मान में मेरा
सिर झुक गया। टिकट लेकर मैं म्यूजियम के अंदर गई। अंदर काउण्टर पर बैठे सज्जन ने मुझसे मेरा पता पूछा। यह जानकर कि मैं भारत से हूँ उन्होंने मुझे रियायती दर
का टिकट देकर कुछ मुद्रा वापस की और बताया कि भारत मॉरीशस के लिए विशेष महत्व रखता है और भारतीयों को रियायती टिकट मिलते हैं। म्यूजियम मानचित्रों, अभिलेखों,
चित्रों, हस्तलिपियों, मूर्तियों, दस्तावेजों का अनूढ़ा संग्रह है। सबको देखते समझते मैं आगे बढ़ रही थी कि मेरी निगाह 15वीं सदी के इतिहास से जुड़ी पंक्तियों
पर पड़ी। The Lian's share शीर्षक इन कागजातों में बताया गया था कि सतरह स्पेन और पूर्तगाल के उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव को मिलाते हुए दुनिया के देशों को
आपस में बाँट लिया, जिसके अनुसार ब्राजील, अफ्रिका और इष्ट इंडीज पुर्तगाल के हिस्से में रहे और स्पेन के पास ब्राजील को छोड़कर दोनों अमेरिका सहित पैसेफिक
महासागर मिला। प्रभुत्व की भूख हरकाल में मनुष्य को घेरे रही है यह दस्तावेज इसी की कहानी कह रहा था। ऐसी अनेक कहानियों से म्यूजियम भरा पड़ा था। मैं घंटों
इन्हे देखती समझती रही। मेरे साथ म्यूजियम का एक कर्मचारी लगातार घूमता रहा, बताता रहा।
म्यूजियम से निकल कर हमलोग अप्रवासी घाट आए। पोर्ट लुइस एक अत्यंत प्राचीन बंदरगाह है। मध्ययुग से ही इसका उपयोग व्यापार के लिए होता रहा है। अब से 180 वर्ष
पूर्व जब मॉरीशस की फ्रेंच सरकार और भारत की ब्रिटिश सरकार के बीच मॉरीशस में गन्ने की खेती करने के लिए भारत के मजदूरों को ले जाने का समझौता हुआ तब मजदूरों
को लेकर जहाज कलकता से चलकर पोर्ट लुइस पहुँचती थी। वह स्थान जहाँ से गिरमिटिया मजदूर उतरते थे, आज अप्रवासी घाट के नाम से जाना जाता है। मॉरीशस वासियों के लिए
यह स्थान तीर्थ की तरह है। यहाँ की सीढ़ियों पर वे शीश झुकाते है। इसी स्थान पर समारोह का मुख्य कार्यक्रम दिनांक 2 नवंबर को हुआ, जिससे भारत की वर्तमान
विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज मुख्य अतिथि थीं। इस कार्यक्रम की भवयता में शामिल होना एक विशेष अनुभव रहा। अप्रवासी घाट की विशेषता यह है कि मॉरीशस
वासियों ने इसे अतीत का स्मरण बनाकर अपने कर्तव्य की इतिश्री नहीं की है वरन इसे वर्तमान से जोड़कर जीवंत किया है। वे यहाँ अपने पूर्वजों का पुण्य स्मरण
करते हुए भविष्य को सँवारने का प्रयत्न करते हैं, इसलिए जहाँ गिरमिटिया मजदूरों के राशन का गोदाम हुआ करता था उसके बगल में चावल को आधुनिक मशीन लगा कारखाना
हैं। कॉडन वाटर फ्रंट एरिया मॉल रेस्टोरेंट होटल आदि से सुसज्जित सैलानियों का प्रिय स्थान है। हमने देखा - सैलानियों के झुंड खाते-पीते मश्ती में मशगूल थे।
रात को आई.जी.सी.आई.सी. में अंतरराष्ट्रीय हिंदी महोत्सव का उदघाटन समारोह संपन्न हुआ।
दिनांक 30 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय भोजपुरी महोत्सव का उदघाटन हुआ। दिनांक 9 नवंबर तक सेमीनार के अनेक सत्र, प्रेस वार्ताएँ, प्रदर्शनियाँ, फूड मेला आदि
विविध कार्यक्रम आयोजित थे। इन कार्यक्रमों में गंभीर विचार विमर्श के साथ-साथ मॉरीशस की उपलब्धियों के अवलोकन का लाभ भी हमें मिला। राष्ट्रपति महोदय एवं
मॉरीशस में भारत के उच्चायुक्त महोदय द्वारा दिए गए भोज एवं उनके सहज आत्मीयता व्यवहार तो हमारे लिए अविस्मरणीय बन गया। यहाँ का कला एवं संस्कृति मंत्रालय
तो आयोजन का कर्ता-धर्ता ही था। कला एवं संस्कृति मंत्री माननीय मुकेश्वर चुन्नी की उपस्थिति एवं उद्बोधन बार-बार प्रभावित करता रहा। भोजपुरी स्पीकिंग
यूनियन कोई कैसे भूल सकता है। दूरदर्शन के अधिकारी अरविंद जी एवं भोजपुरी कार्यक्रमों की प्रस्तोता नर्वदा जी की व्यवहार कुशलता एवं सुगठित कार्यक्रम संचालन
ने सबको बाँधे रखा। मुझे मॉरीशस ग्राडकॉस्टिंग कॉरपोरेशन में जाने का भी सुअवसर मिला। दूरदर्शन के कार्यक्रम में मुझसे बातचीत कर रही थीं नर्वदा जी और विषय था
भोजपुरी संस्कृति। प्रश्न और उत्तर के क्रम में कई बार हम दोनों की आँखे भर आयी। सेमिनार में मेरे आलेख के केंद्र में भोजपुरी संस्कृति थी आयोजन के अधिकांश
कार्यक्रम महात्मा गांधी इंस्टीट्यूट और इंदिरा गांधी संस्कृति केंद्र में आयोजित थे। ये दोनों मॉरीशस के अत्यंत महत्वपूर्ण शैक्षिक एवं सांस्कृतिक केंद्र
हैं। म.गां.इ. का विशाल पुस्तकालय अत्यंत समृद्ध है। यहाँ मैंने अपनी पुस्तक फणीश्वर नाथ रेणु के उपन्यास लोक तत्व एवं संरचना त्था अपने मित्र डॉ. दिवाकर
तिवारी की गोरखपुर परिक्षेत्र का इतिहास सादर समर्पित की। म.गां.इ. में एक समृद्ध संग्रहालय भी है। यहाँ गिरमिटिया मजदूरों का संपूर्ण रिकार्ड सुरक्षित है। उनके
नाम पता तस्वीर आदि पढ़कर रोमांच हो आया। इ.गां.क.इ. फेनेक्स उस स्थान के नाम पर रखा गया नाम है जहाँ जी दक्षिण अफ्रीका में रहे थे। इससे अनुमान लगाया जा
सकता है कि भारत से मॉरीशस का जुड़ाव कितना गहरा और आत्मिक स्तर का है।
दिनांक 2 नवंबर को हम मॉरीशस के समुद्री तटों की ओर निकले। लेकिन उधर जाने से पहले जरूरी था कि हम गंगा तालाब के दर्शन करें अत: पहले गंगा तलाब। इस दिन हम
विश्व भोजपुरी सम्मेलन, देवरिया (भारत) के महासचिव डॉ. अरूणेश नीरन के साथ थे। नीरन जी के प्रिय शिष्य देव उनकी सेवा में थे, जिसका लाभ हम सबको मिल रहा था।
बातचीत करते हुए नीरन जी ने जानना चाहा कि हमारी हवाई जहाज की यात्रा कैसी रही। इसे सुनाते हुए राय साहब अचानक हँसने लगे उन्हें मेरी एक बेवकुफी याद आ गई थी।
हुआ यूँ था कि दुबई से मॉरीशस के बीच की उड़ान में एयर होस्टेस ने चाय दी। अब तक अत्यंत पतली हल्की चाय पीते-पीते मैं ऊब गई थी। मैंने बिना दूध की चाय की
माँग की। इसके लिए मैंने 'लीकर' शब्द का प्रयोग किया। एयर होस्टेस ने मुझसे पूछा बिना पानी के? उसके प्रश्न से राय साहब ने जान लिया था कि लीकर से उसका मतलब
एल्कोहल से था। उन्होंने हँसते हुए स्थिति साफ की थी। पूरा वाकया नीरन जी को मैंने सुनाया। एल्कोहल का स्वाद तो मुझे मालूम नहीं, अपनी बेवकूफियों का स्वाद
मुझे बहुत मजा देता है।
'गंगा तालाब' पहुँच कर मन तृप्ति हो गया। यह मॉरीशस वासियों की गंगोत्री है, केदारनाथ है। धाम है। ज्वामुखी से निर्मित झील गंगा तालाब है। बिना गंगा के भारतीय
की कल्पना की ही नहीं जा सकती। मॉरीशस पहुँचे भारतीय मजदूरों के नसीब में गंगा का प्रवाह नहीं रहा तो गंगा तालाब ही सही। गंगा जल की कुछ बूँदों ने झील को गंगा
तालाब बना दिया है। वहीं शिव लिंग की स्थापना की गई मंदिर बना। बात तो आस्था की होती है, शक्ति तो आस्था में होती है। शिवरात्रि के दिन यहाँ विशाल मेला लगता
है। किंवदंति प्रचलित है कि एक आदमी ने स्वप्न देखा कि इस स्थान पर पूजा करो तभी देश की उन्नति होगी। आदमी ने पूजा करना शुरू किया मॉरीशस विकास के मार्ग पर
चल पड़ा। सन् 1964 में यहाँ मंदिर बना मंदिर के बाहर उस आदमी की मूर्ति भी स्थापित है। मंदिर की पवित्रता और उसका सौंदर्य तो यहाँ प्रभावित तो करता ही है, यहाँ
की व्यवस्था और देख रेख निश्चित रूप से अति उत्तम है। आम तौर पर शिव मंदिर सदैव कीच-काच से भरे होते हैं। भोलेनाथ को हम एक लोटा जल से नहलाते हैं तो एक लोटा
जल फर्श पर गिराते हैं। गंगा तालाब में शिव लिंग की स्थापना थोड़े गहरे स्थान पर की गई है। इसके लिए एक गोलाकार गड्ढानुमा जगह बनाई गई है। उसके मध्य में शिव
लिंग स्थापित है। एक ओर नल लगा है, दूसरी ओर जल निकासी की व्यवस्था है। नल के नीचे बाल्टी रखी है। सारी व्यवस्था बस इतनी गहराई में कि भक्त फर्श पर बैठकर
हाथ से आसानी से जल ढार सके। पूरा मंदिर साफ-सूथरा सुंदर सा। हम सभी ने पूजा अर्चना की और पुजारी महाराज से प्रसाद ग्रहण किया।
आगे समुद्र दर्शन की बारी थी। मॉरीशस एक छोटा सा वॉल्केनिक टापू है। एक ही दिशा में कुछ कि.मी. चला जाए तो समुद्र की लहरों की आवाज कानों में आने लगती है।
सुरम्य प्रकृतिक परिवेश को पर्यटन की दृष्टि से मॉरीशस ने भली भाँति सजाया है। समुद्र के साथ-साथ चलती सुंदर सड़कों पर भागती आरामदेह कारें, सुंदर रेस्टोरेंट
घूमने का मजा कई गुना बढ़ा देता है। हम लोगों ने लिमांस बीच का सतरंगा सागर फ्रीक ऑव लग सी बीच का खुली खुबसूरती आँख भर-भर कर देखी। मॉरीशस ने समुद्री शेड्स में
काफी विविधता है। यहाँ कहीं जीवित कोरल वाले समुद्र तट हैं तो कहीं धूप स्नान करने योग्य तट। समुद्र-उसमें उठती गिरती लहरे, ऊपर झुका हुआ आकाश और समुद्र में
तैरते जहाज को मॉरीशस की पहचान कहा जाए तो अनुचित नहीं होगा। समुद्र प्रतीक है उसके प्राकृतिक दाय का और जहाज प्रतीक है मानवीय उपलब्धियों का यही दोनों मिलकर
मॉरीशस के इतिहास, वर्तमान और भविष्य को व्यक्त करते हैं।
5 नवंबर को हम लोगों ने गाँवों को देखने की योजना बनाई। टाटा की टोली के साथ विजय रामचन की टैक्सी में सवार हम सभी गाते बजाते मस्ती के मूड में थे। दूर मुरिया
पहाड़ दिखाई दे रहा था। मुरिया पहाड़ मॉरीशस के बड़े पहाड़ों में एक है। मुरिया पहाड़ हमें एक आदमी की मुड़ी (सिर) और धड़ की तरह दिखाई दे रहा था। विजय रामचन ने
हमलोगों को बताया कि इसका मुँह खरबासा (गंगा तालाब) की तरफ है। इस प्रहाड़ से जुड़ी एक कहानी है। यहाँ का राजकुमार खरबासा में उतरने वाली परी से प्रेम करता था।
वह पहाड़ बनकर आज भी उसी दिशा में निहारा करता है। हम पास के गाँव क्रेफकेर में गए। हमने पाया कि मॉरीशस के गाँव काफी उन्नत और समृद्ध गाँव हैं। मोटे तौर पर एक
शहर और गाँव का अंतर समझाना हो तो कहा जा सकता है कि गाँव में बहुमंजली इमारतें नहीं है और कृषि योग्य भूमि है। रहन सहन का स्तर शहर और गाँव का एक जैसा ही है।
प्रत्येक घर के आगे दो मंदिर- शिव और काली का और दो झंडे ओंकारी और महावीरी - होते हैं। इन्हें देखकर हमें पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के गाँव याद आ गए।
मॉरीशस के गाँव भारत के भोजपुरिया गाँवों के भाई बिरादर हैं।
विदा करते हुए क्रेफकेर के किसान परिवार ने नायाब तोहफा हमें दिया। उन्होंने हमें पके आम दिए। उन आमों को भारत आकर मैंने अपने दौहित्रों को दिया विजय रामचन ने
अपने देश का एटलस दिया। यह मेरी किताबों के साथ मेरे घर की शोभा बढ़ा रहा है।
सैकड़ों वर्ष पहले भारत के लोग गिरमिटिया बनकर मॉरीशस आए। उन्होंने अपने परिश्रम से पत्थरों को हटा हटा कर कृषि योग्य जमीन तैयार की इतने पत्थर हटाए कि उन
पत्थरों के छोटे-छोटे पहाड़नुमा टिेले तैयार हो गए। हमने इन टिलों को देख और देखा उस फसल को भी जो उनके बोए बीजों से तैयार हुई है। कोड़कर, जोतकर, निराकर ही तो
संस्कारित किया जाता है। भारतीयों ने मॉरीशस में यही किया। हमने मॉरीशस में भारत को देखा। इस आनंदप्रद अनुभव के साथ हम लौट आए।